न्यायिक प्रक्रिया पर संदेह पैदा कर रहे हैं केजरीवाल : हाई कोर्ट

क्षमा देना या अनुमोदनकर्ता का बयान दर्ज करना जांच एजेंसी का क्षेत्राधिकार नहीं,

Apr 10, 2024 - 23:04
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न्यायिक प्रक्रिया पर संदेह पैदा कर रहे हैं केजरीवाल : हाई कोर्ट

क्षमा देना या अनुमोदनकर्ता का बयान दर्ज करना जांच एजेंसी का क्षेत्राधिकार नहीं 

सरकारी गवाह के माध्यम से न्यायिक दिल्ली उच्च DELHI HIGH COURT


प्रक्रिया पर आक्षेप लगाने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आड़े हाथों लिया। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा कि क्षमादान देने के तरीके या अनुमोदकों (अप्रूवर) के बयान दर्ज करने के तरीके पर संदेह करना न्यायिक प्रक्रिया पर संदेह पैदा करने के समान है। केजरीवाल ने याचिका में तर्क दिया था कि अनुमोदक राघव मगुंटा और शरथ रेड्डी के देर से आए बयानों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि उन्होंने चुनावी बांड के माध्यम से सत्तारूढ़ पार्टी को दान भी दिया था।

अदालत ने कहा कि माफी देने या अनुमोदनकर्ता के बयान दर्ज करने के तरीके के बारे में संदेह करना न्यायिक प्रक्रिया पर संदेह करना है, क्योंकि क्षमा देना या अनुमोदनकर्ता का बयान दर्ज करना जांच एजेंसी का क्षेत्र नहीं है। यह एक न्यायिक प्रक्रिया है, जिसमें एक न्यायिक अधिकारी अनुमोदक का बयान दर्ज करने और क्षमा देने या न देने के लिए सीआरपीसी के प्रविधानों का पालन करता है। अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की उक्त प्रक्रिया को चुनौती दिए बिना यह मानना कि मामले में अनुमोदनकर्ता को दी गई माफी ईडी के आदेश पर थी, प्रक्रिया पर सवाल उठा सकती है। अदालत ने कहा कि वर्तमान मामला पहला और आखिरी नहीं था, जिसमें अनुमोदकों के बयान दर्ज किए गए थे। अभियोजन पक्ष द्वारा उन पर भरोसा किया गया था।

ट्रायल के दौरानकेजरीवाल अनुमोदक के बयानों का परीक्षण करने के लिए स्वतंत्र होंगे। विशेष व आमजन के विरुद्ध अलग- अलग नहीं हो सकती जांच... न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि आपराधिक मामले की जांच विशेष व आमजन के विरुद्ध अलग-अलग नहीं हो सकती। यह अदालत कानूनों की दो अलग- अलग श्रेणियां नहीं बनाएगी, जिसमें आम जनता के लिए हो और दूसरा एजेंसियों द्वारा सीएम या सत्ता में किसी भी व्यक्ति को होने के आधार पर विशेष अधिकार देते हुए हो। सार्वजनिक हस्तियों की जवाबदेही आम जनता की तरह होनी चाहिए। अदालत ने कहा कि चुनाव के दौरान गिरफ्तारी के समय पर केजरीवाल के रुख को कायम रखने का मतलब उस व्यक्ति को स्थिति का फायदा उठाने और बाद में दुर्भावनापूर्ण दलील देने की अनुमति देना होगा, जो एजेंसी के सामने खुद को पेश करने में देरी करता है।


खुद को जारी नी समन को केजरीवाल ने नहीं दी चुनौती... अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने न्यायालय का कोई आदेश प्राप्त नहीं किया और न ही 19 मार्च को हाई कोर्ट की पीठ के समक्ष याचिका दायर करने से पहले तक किसी अदालत का दरवाजा खटखटाया था। इतना ही नहीं, छह महीने में केजरीवाल ने उन्हें जारी किए गए नौ समन को चुनौती नहीं दी।

सीएम की तरफ से नायर ने ली 100 करोड़ की रिश्वत

अदालत ने यह भी कहा कि 18 नवंबर 2022 को दिए अपने बयान में आप मीडिया प्रभारी विजय नायर ने कहा था कि वह दिल्ली सरकार के मंत्री कैलाश गहलोत को आवंटित सरकारी बंगले में रहता था। अदालत ने कहा कि अनुमोदक व गवाह प्रथमदृष्टया बताते हैं कि विजय नायर ने केजरीवाल व आप की तरफ से दक्षिण समूह की शराब लाबी से 100 करोड़ रुपये की रिश्वत ली थी और इसका उपयोग गोवा विधानसभा चुनाव में किया गया था।

अरविंद के पूछताछ में न शामिल होने से जांच पर असर

अदालत ने कहा कि पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को जमानत देने से इन्कार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जाच एजेंसी का बयान नोट किया था कि वह छह से आठ महीने में ट्रायल पूरा करेगी। अदालत की राय है कि केजरीवाल के जांच में शामिल न होने से पहले से ही हिरासत में बंद सह-अभियुक्त के ट्रायल पर भी असर पड़ा है। अक्टूबर 2023 से जांच में देरी हुई है, क्योंकि एजेंसी लगातार केजरीवाल से पूछताछ की कोशिश कर रही थी।

पूछताछ में सूचना देने के लिए बाध्य नहीं ईडी पूछताछ के लिए क्यों व किस हैसियत से समन करने के केजरीवाल के सवाल पर पीठ ने कहा कि अदालत की राय है कि पीएमएलए के तहत ईडीको किसी व्यक्ति को सुचित करने की आवश्यकता नहीं है। अदालत ने कहा कि निश्चित तौर पर मौजूदा सीएम होने के कारण उनके कई निर्धारित कार्यक्रम होंगे, लेकिन उन्हें पता था कि जाच एजेंसी उन्हें समन भेज रही है।


रिमांड पर लेने के सिवा नहीं था कोई रास्ता.... अदालत की राय है कि कि केजरीवाल नौ समन पर पूछताछ के लिए शामिल नहीं हुए थे और ऐसे में उनको रिमांड लेने के सिवा कोई रास्ता नहीं था। केजरीवाल ने 28 मार्च को अदालत के समक्ष कहा था कि वह जांच में सहयोग करने को तैयार हैं और आगे रिमांड बढ़ाने पर उन्हें आपत्ति नहीं है।

ईडी ने याचिका का किया था विरोध प्रथम पृष्ठ से आगे केजरीवाल की याचिका का पुरजोर विरोध करते हुए पिछली सुनवाई में ईडी ने कहा था कि अपराधियों और विचाराधीन कैदियों को यह कहने का कोई अधिकार नहीं है कि वह अपराध करेंगे और चुनाव होने के कारण जांच एजेंसी द्वारा उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। यह पूरी तरह से हास्यास्पद है।

ईडी की तरफ से पेश हुए एएसजे एसवी राजू ने सवाल किया था कि मान लीजिए कोई राजनीतिक व्यक्ति चुनाव से पहले हत्या कर देता है तो क्या उसे गिरफ्तार नहीं किया जाएगा? क्या उसकी गिरफ्तारी से (चुनाव को) नुकसान होगा? एएसजी एसवी राजू ने यह भी पूछा था कि आप एक हत्या करते हैं और कहते हैं कि मुझे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे संविधान की बुनियादी संरचना का उल्लंघन होगा, यह किस तरह की बुनियादी संरचना है? आरोपितों के सरकारी गवाह बनने के तर्क पर एएसजी ने कहा था कि आरोपित सुबूत पेश किए जाने के बाद अपना बयान बदल सकते हैं।

जब अभियुक्त का सामना सुबूतों से कराया जाता है तो वे कहते हैं कि मैं गलत था। उन्होंने कहा था कि यदि हम दिखा सकते हैं कि आप मनी लांड्रिंग में शामिल थे तो अपराध की वास्तविक आय का पता लगाने की बात अप्रासंगिक है। तलाशी में अपराध की आय नहीं मिलने के केजरीवाल के तर्क पर एएसजी ने कहा था कि आरोपित मुख्यमंत्री कहते हैं कि जांच एजेंसी को घर में कुछ नहीं मिला, लेकिन हकीकत तो यह है कि अपराध की आय को पहले ही गोवा चुनाव में इस्तेमाल किया जा चुका है। आपने इसे किसी और को दे दिया, विदेश भेज दिया तो यह आपके निवास से कैसे बरामद की जाएगी? इसका मतलब यह नहीं है कि कोई अपराध नहीं हुआ है।

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